हथियाराम मठ आने से स्थान नहीं व्यक्ति का बढ़ता है महत्व

गाजीपुर। अध्यात्म जगत में तीर्थस्थल के रूप में स्थापित सिद्धपीठ हथियाराम मठ के 26वें पीठाधिपति महामंडलेश्वर स्वामी भवानीनन्दन यति जी महाराज के 27वें चातुर्मास महानुष्ठान का शनिवार को भाद्र पद पूर्णिमा के अवसर पर समापन हुआ। चातुर्मास महाव्रत के पूर्णाहुति पर हवन-पूजन और प्रवचन के उपरांत विशाल भंडारे का आयोजन हुआ, जिसमें हजारों शिष्य-श्रद्धालुओं ने पुण्य-लाभ की कामना के साथ महाप्रसाद ग्रहण किया।
पूर्णाहुति कार्यक्रम में महामंडलेश्वर स्वामी भवानीनंदन यति महाराज ने अपने ब्रह्मलीन गुरु महामंडलेश्वर स्वामी बालकृष्ण यति महाराज के चित्र पर माल्यार्पण कर दीप प्रज्वलित किया। बतौर मुख्य अतिथि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रांत प्रचारक रमेशजी ने सिद्धपीठ के पीठाधीश्वर महाराज को परम संत बताते हुए कहा कि उनका दर्शन कर आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए दुनिया के सबसे विशाल संगठन के मुखिया मोहन भागवत भी यहां आने व महाराजश्री का दर्शन पाने का इंतजार करते रहे। तीन वर्ष से लगातार आना चाहते थे। महंथजी का आशीर्वाद लेकर कहा कि इस पवित्र स्थल पर आने से स्थान का नहीं बल्कि व्यक्ति का महत्व बढ़ जाता है। उन्होंने कहा कि देश के अंदर बहुत से मठ-मंदिर और आश्रम हैं, परन्तु यह मठ अध्यात्मिक ऊर्जा का केंद्र शक्तिपीठ है। यहां से जो जितना जुड़ता है, वह उतना ही जुड़ता चला जाता है। साधना के केन्द्र इस मठ से जुड़ना राष्ट्र से जुड़ने का उपक्रम साधन है। उन्होंने कहा कि हम सभी लोग नियमित रूप से देश के लिए प्रार्थना करते हैं। जिस देश में मातृभूमि के लिए प्रार्थना-वंदना होती हो वहीं से शक्ति ऊर्जा मिलती है। उन्होंने कहा कि आध्यात्मिक प्रेरणा देने वाली माताएं-बहने भी इस सिद्धपीठ से जुड़ी हैं। ऐसे में इस सिद्धपीठ से जुड़ना मेरे लिए गर्व की बात है। पीठाधीश्वर महामंडलेश्वर स्वामी श्री भवानीनंदन यति महाराज ने चातुर्मास की व्याख्या करते हुए बताया कि चातुर्मास, सनातन वैदिक धर्म में आहार, विहार और विचार के परिष्करण का समय है। चातुर्मास संयम और सहिष्णुता की साधना करने के लिए प्रेरित करने वाला समय है। इसका सिर्फ धार्मिक महत्व ही नहीं है। इस दौरान तप, शास्त्राध्ययन एवं सत्संग आदि करने का तो विशेष महत्व है ही, सभी नियम सामाजिक, सांस्कृतिक और व्यावहारिक दृष्टि से भी बड़े उपयोगी हैं। चातुर्मास धर्म, परम्परा, संस्कृति और स्वास्थ्य को एक सूत्र में पिरोने वाला समय माना जाता है। चातुर्मास संयम को साधने का संदेश देता है। बढ़ती असंवेदनशीलता के समय में संयम की यह साधना और भी आवश्यक हो जाती है। संयमित आचरण से हम न केवल मन को वश में करना सीखते हैं, बल्कि हमें धैर्य और समझ भरा व्यवहार करना भी आता है। उन्होंने बताया कि चातुर्मास ऐसा अवसर है, जिसमें हम खुद अपने ही नहीं औरों के अस्तित्व को भी स्वीकार कर उसे सम्मान देने के भाव को जीते हैं। चातुर्मास हमें मन के वेग को संयम की रस्सी से बांधने की प्रेरणा देता है। कहा कि स्वास्थ्य की देखभाल और जागरूकता के लिए भी चातुर्मास का बड़ा महत्व है। चातुर्मास धार्मिक दृष्टि से ही नहीं, बल्कि आरोग्य विज्ञान व सामाजिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। उन्होंने कहा कि भारतीय संस्कृति को यदि हम केवल तीन शब्दों में कहना या बताना चाहें तो इसका मतलब अर्पण, तर्पण और समर्पण है। इन तीनों में ही त्याग की भावना समाहित है। उन्होंने कहा कि यह त्याग समाज के लिए कर्तव्यरूप है, उपकाररूप नहीं। हम किसी पर उपकार नहीं करते, बल्कि यह हमारा कर्तव्यरूप है। हमारे द्वारा किया गया यह त्याग ही अर्पण कहलाता है। पितरों के लिए, माता पिता के लिए किया गया त्याग तर्पण कहलाता है। भगवान के लिए किया गया त्याग समर्पण कहलाता है। हमारा कर्तव्य है कि जिस समाज में हम रह रहे हैं, उस समाज के लिए कुछ करें। कर्तव्य वह कर्म है जिसको करने से पुण्य नहीं मिलता, लेकिन ना करने से पाप जरूर लगता है। उन्होंने कहा कि सिद्धपीठ हथियाराम मठ स्थित मृणमयी बुढ़िया माई के पुण्य प्रताप से यहां की माटी चंदन से भी पवित्र है। इस पवित्र भूमि पर किए गए धार्मिक अनुष्ठान से मन को शांति मिलती है। इस अवसर पर विशिष्ट अतिथि प्रांत प्रमुख रामचंद्रजी, नाथ संप्रदाय गोरक्ष मठ रसड़ा के कौशलेंद्र गिरी, संत देवरहा बाबा, मौनी बाबा मठ कनुवान के महंत सत्यानंद महाराज, डा. रत्नाकर त्रिपाठी, मंगला सिंह व्यास, भाजपा जिलाध्यक्ष भानुप्रताप सिंह, पारसनाथ राय, राजेंद्र सिंह, मंजू सिंह, सुश्री डा. अमिता दूबे, डॉ. संतोष मिश्रा, केडी सिंह, हरिश्चन्द्र सिंह, .डॉ. एके राय, राधेश्याम जायसवाल, आचार्य मनीष, महावीर प्रसाद, दुर्गा प्रसाद, आनंद मिश्रा, अटल सिंह, सतीश जायसवाल, लौटू प्रजापति सहित हजारों की संख्या में नर-नारी उपस्थित रहे।

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