महानायकों के जीवन आदर्श हमें देंगे रोशनी: प्रो.अवधेश प्रधान

गाजीपुरः महानायकों से हमें उनके जीवन आदर्शों को ग्रहण करना चाहिए।जहां से समाज को आगे ले जाने की रोशनी मिलती है उसे लेकर फैलाना पड़ेगा।गांधी, अंबेडकर जैसे लोगों ने आजादी के आंदोलन में और समाज को आगे ले जाने में जो प्रयास किया अब उसे मिटाने की कोशिश हो रही है।इसे हर स्तर पर प्रयास कर रोकना होगा।शुक्रवार को लंका मैदान के मैरेज हाल में प्रो.गजेंद्र पाठक द्वारा संपादित डा.पीएन सिंह रचनावली के विमोचन और उसके बाद आयोजित जनतांत्रिक समाज की खोज विषयक गोष्ठी में उक्त उद्गार बीएचयू हिंदी विभाग के प्रो.अवधेश प्रधान ने व्यक्त किया।
उन्होंने कहा कि महात्मा गांधी ने अपने आश्रम में हरिजन कन्या को रखा तो आश्रमवासियों ने इसका विरोध किया।लेकिन गांधी जी अड़े और आश्रमवासियों को उसके साथ रहना स्वीकार करना पड़ा।अछूत जाति की महिलाओं को दक्षिण भारत में कमर से उपर कपड़ा पहनने की आजादी नहीं थी।डा.अंबेडकर को इसके विरोध में सभा करने के लिए आमंत्रित किया गया।उन्होंने शर्त रखी कि सभा में केवल महिलाएं आएंगी और पूरे वस्त्र पहनकर आएंगी।जब यह शर्त स्वीकार किया गया तब वह सभा में गए । इस प्रथा का इस तरह से विरोध किया।हम अपने संस्कारों से इतने बंधे हैं कि उनसे आजादी हासिल करना आसान नही है।गांधी को मारने से पहले सात बार मारने की कोशिश की गई।आज गांधी को मारने वाले का जयकारा लग रहा है तो हमें सोचना होगा।जनतांत्रिक समाज का निर्माण परिवार, घर,गांव से होगा।बीएचयू के ही प्रो.सदानंद शाही ने कहा कि पीएन सिंह मार्क्स से अपनी यात्रा शुरु कर डा.अंबेडकर, गांधी, नेहरू, लोहिया तक आए।वे इन विचारों को प्रतिद्वंद्वी नहीं बल्कि पूरक मानते रहे।असल विकास वह है जिसमें मनुष्यता का निवास हो।डा. रामसुधार सिंह ने कहा कि डा.पीएन सिंह के पास संस्मरणों का भंडार है उनके संस्मरण समाज की समीक्षा हैं।अध्यक्षीय संबोधन में साहित्यकार विभूति नारायण राय ने कहा कि पीएन सिंह ने अपने समय के साथ कारगर ढंग से हस्तक्षेपी जीवन जीया।जिस वक्त जो लिखना चाहिए वही लिखा।लेखन के साथ समझौता नहीं किया।आज के समय में उनका लेखन उचित दिशा देता रहेगा।अस्वस्थता के कारण कार्यक्रम में शामिल न हो सके डा.पीएन सिंह का संदेश डा.अनिल कुमार सिंह ने पढ़ा।गोष्ठी में डा.महेन्द्र प्रताप, रामजी सिंह यादव प्रो.चंद्र देव यादव आदि ने विचार व्यक्त किया।संचालन कन्हई राम प्रजापति और आभार ज्ञापन डा.बद्रीनाथ सिंह ने किया।गिरिजा मस्ताना ने अपनी कविता पढ़ी।

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