शहीद अलगू और जित्तन पांडेय को कब मिलेगा सम्मान

सादात। पूरा देश आजादी की 77वीं वर्षगांठ मना रहा है, ऐसे में सादात क्षेत्र के आजादी के दीवानों की बात न हो तो ये बेमानी होगी। आजादी के दीवानों ने एक समय में पूरे सादात थाने को फूंक दिया था और उसमें दरोगा समेत दो पुलिसकर्मियों को जिंदा जला दिया था। आजादी की लड़ाई में सादात क्षेत्र के वीर सपूतों की भूमिका काफी महत्वपूर्ण रही है। मामला आजादी के पहले 1942 का है। 15 अगस्त 1942 को भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ यहां बड़ा विद्रोह हुआ था। इस विद्रोह में सादात थाना के प्रभारी मुंशी हमीदुल्लाह खां और सिपाही वली मुहम्मद को जिंदा जला दिया गया था। इस विद्रोह में एक क्रांतिकारी अलगू शहीद हो गए थे। जिंदा जलाए गए दोनों पुलिस कर्मियों की मजार पुलिस विभाग ने बनवा दी लेकिन इस कांड के नायक अलगू की पहचान को साबित करने वाला कोई स्मारक अभी तक यहां नहीं बना है। उनकी मूर्ति भी कहीं नहीं लगी है। जिससे ये शहीद आज भी उपेक्षित है। जबकि उनके सहयोगी रहे क्रांतिकारी जित्तन पांडेय की प्रतिमा को मंजुई चौराहे पर लगवाने का भरोसा दिया गया। उनकी प्रतिमा भी बनकर तैयार है और उनके घर पर रखी है लेकिन कोई सुध लेने वाला नहीं है। एक तरफ केंद्र सरकार शहीदों को सम्मान देने के लिए तमाम कार्य कर रही है तो दूसरी तरफ शासन प्रशासन का ये सौतेलापन लोगों को हजम नहीं हो रहा। 1942 में 14 अगस्त की शाम को ही क्रांति की आग भड़क चुकी थी और क्रांतिकारियों के खून अंग्रेजी दासता को सहते हुए उबलने लगे थे। जिसका परिणाम ये रहा कि अगले ही दिन 15 अगस्त को तड़के ही क्रांतिकारी सादात रेलवे स्टेशन को फूंकने और डाकघर एवं सहकारी बीज गोदाम को लूटने पहुंच गए थे। देखते ही देखते डाकघर और बीज गोदाम लूट लिया गया। उधर रेलवे स्टेशन में क्रांतिकारियों द्वारा तोड़-फोड़ जारी थी। स्टेशन को फूंकने का प्रयास करते हुए क्रांतिकारियों पर वहां मौजूद अंग्रेज पुलिस ने फायर झोंक दिया। एक गोली क्रांतिकारी हरिवंश दूबे के पैर में लगी और वे घायल हो गए। गोली चलने की घटना पूरे क्षेत्र में आग की तरह फैल गई और देखते ही देखते कुछ ही घंटे में वहां हजारों की भीड़ एकत्र हो गई। क्रांतिकारियों की भीड़ बढ़ते देख पुलिस भागने लगी। उन्हें भागते देख क्रांतिकारी भी उनका पीछा करते हुए थाने पहुंच गए लेकिन वहां से सब इंस्पेक्टर मुंशी हमीदुल्लाह खां और सिपाही वली मुहम्मद को छोड़कर बाकी सब भाग गए। ये दोनों पुलिस कर्मी भी मौका पाते ही घोड़े पर सवार होकर भागने लगे तभी क्रांतिकारियों ने उनको घेर लिया। क्रांतिकारी अलगू साहस दिखाते हुए घोड़े के पास पहुंचकर सब इंस्पेक्टर मुंशी हमीदुल्लाह खां का एक पैर पकड़ कर घोड़े से खींचने लगे। उसी वक्त उसने अलगू के सीने मे गोली मार दी और वे मौके पर ही शहीद हो गए। अलगू के शहीद होते ही क्रांतिकारी दोनों पुलिस कर्मियों पर टूट पड़े और उन दोनों का पैर पकड़कर घसीटते हुए थाने में ले आए। वहां क्रांतिकारियों ने थाने के कमरों के दरवाजे एवं खिड़कियां तोड़कर लकड़ी जुटाई और आग लगाकर दोनों पुलिस कर्मियों को उसी में फेंककर जिंदा जला दिया। सादात कांड में अहम भूमिका निभाने वाले क्रांतिकारियों में जित्तन पांडेय भी रहे। लेकिन आज उस कांड का हर क्रांतिकारी व उनका परिवार शासन प्रशासन की उपेक्षा का दंश झेल रहा है।

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