हाथी,जाति और साथियों के भरोसे

गाजीपुर। चुनाव मैदान में उतरे उम्मीदवार किसी न किसी का सहारा जरूर लेते हैं। लोगों से मिलने वाली मदद से ही वह लड़ाई में होते हैं और विजय श्री का वरण कर सांसद, विधायक बनते हैं। गाजीपुर संसदीय क्षेत्र से बसपा उम्मीदवार डा. उमेश कुमार सिंह के भी चुनाव में तीन भरोसे मुख्य हैं। उनके लिए हाथी, जाति और साथी प्रमुख चुनावी हथियार हैं। इसे विस्तार से उनके समर्थक समझाते भी हैं।
डा. उमेश कुमार सिंह के समर्थकों का कहना है कि हाथी बहुजन समाज पार्टी का चुनाव चिन्ह है। बहुजन समाज पार्टी के आधार वोटर हैं जो केवल अपनी पार्टी के चुनाव चिन्ह हाथी को देखते हैं।दलित और खासकर चमार विरादरी आंख मूंदकर अपना वोट हाथी को देती है। इसके अलावा दलित समुदाय में आने वाली अन्य जातियां भी हाथी को अपना साथी मानकर वोट करतीं हैं। इसके अलावा अन्य पिछड़ी जातियों में प्रमुख राजभर और कुशवाहा भी झोली भर भरकर बसपा को वोट करती रहीं हैं। डा. उमेश सिंह के समर्थक इस बार भी उनसे पूरी उम्मीद लगाकर चुनावी अभियान में जुटे हुए हैं।


डा. उमेश सिंह के रणनीतिकार अपना दूसरा प्रमुख आधार अपने उम्मीदवार के जातिगत मतों को मान रहे हैं। राजपूत जाति से आने वाले डा. उमेश सिंह के स्वजातीय मतदाताओं की अच्छी तादात गाजीपुर संसदीय क्षेत्र में है। बल्कि यूं कहें कि अगड़ी जातियों में सर्वाधिक संख्या राजपूत मतदाताओं की है। राजपूत जाति के अकेले उम्मीदवार डा. उमेश सिंह गाजीपुर संसदीय क्षेत्र से हैं। बिरादरी के मतदाताओं का पूरा साथ मिलेगा यह भरोसा उनके रणनीतिकारों को है।
अब तीसरे नंबर पर साथी हैं। साथी ही चुनाव मैदान में डा. उमेश सिंह के संबल बने हुए हैं। वोट और नोट दोनों से। खुद डा. उमेश कहते हैं कि न तो मैं ठेकेदार हूं,न माफिया और न हीं साहूकार। सामान्य परिवार से आता हूं। अधिवक्ता पेशे के साथ सामाजिक और राजनैतिक जीवन जीता रहा हूं। इसलिए कोई धनसंग्रह तो किया नहीं। संसदीय चुनाव का पूरा खर्च साथियों की मदद से संभल रहा है। यह न केवल अपना और परिवार नातेदार का वोट दे दिलवा रहे हैं बल्कि पूरे मनोयोग से चुनावी अभियान में लगे हुए हैं। इनकी सहायता से अभियान गतिमान है और इसी वजह से दूसरी जातियों और समुदाय भी साथ जुड़ते जा रहे हैं। अब चुनावी नतीजे बताएंगे कि डा. उमेश कुमार सिंह के कितने काम आए हाथी, जाति और साथी।

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